मैं एक दिन कह दूंगा अलविदा
ज़माने को, कहानी को
और लपेटकर ख़ुद पर गुमनामी की चादर
सो जाऊंगा सुकून के बिस्तर में
जहां ख़ामोश सी इक नींद होगी
पलकों पर एक ख़्वाब होगा
उस ख़्वाब में कोई ना होगा
बस मेरे कुछ किस्से होंगें
और सिर्फ़ मेरी ज़िंदगी
फिर अगली रोज़ जब सहर होगी
आँखें किसी की दीद को नहीं तरसेंगी
ना जेहन में कोई खयाल होगा
ना शिकवा ना ही मलाल होगा
मैं तबतक शायद तुमसे दूर जा चुका हूंगा
और खुद के पास आ चुका हूंगा
वो अलविदा शायद मेरा आख़िरी ना हो
पर जब मैं तुमसे दोबारा मिलूंगा
तो तुम पाओगे कि मैं अब वो शख़्स नहीं रहा
जिसे तुम कभी जाना करते थे।

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