यदि किसी संघर्ष को किस्मत की सहायता अनिवार्य है तो यह उस संघर्ष के लिए किसी लाचारी से कम नहीं।
क्यों सौंप दिया जाता है अथक प्रयत्न को एक उम्मीद के सहारे?
क्यों विचार और सत्य के द्वन्द को जीतने के बाद भी वह युद्ध लड़ना पड़ता है जिसका परिणाम केवल नियति के हाथ में होता है?
यदि सर्वजन कर्म के दास हैं तो क्यों अनुचित विषय भोगता है और उचित यातना?