गहमागहमी बढ़ी सियासी गलियारों में
कुर्सी बचाने की जद्दोजहद थी
बैठे कुछ विद्वान मंडली लगाए
मुद्दा था अगला मुद्दा किसको बनाएं?

एक ज्ञानी बोला, रोजगार को बनाते हैं
भीड़ बहुत है एक दो को चुन लाते हैं
उनका हवाला देकर थोड़ी उम्मीद दे जाएंगे
महोदय, इस बार भी अपनी कुर्सी बचा ले जाएंगे

दूसरा ज्ञानी बोला, बाल मजदूर को बनाते हैं
छोटू, मुन्ना को पकड़कर स्कूल भिजवा आते हैं
“देश का भविष्य हम संवारेंगे”
यह नारा चीखेंगे चिल्लाएंगे
श्रीमान, विपक्ष सकते में होगा और हम जीत जाएंगे

यूं ही विचारों का मंथन चल रहा था सभा में
सुझाव कई थे मगर अमल किस पर करें
फिर एक शब्द उछला और सब के चेहरे खिल गए
वह शब्द “धर्म” था,
जिससे बाकी विचारों के वजूद हिल गए

रणनीति बनी, मुद्दे चुने गए
अफवाहों का दौर चला
देखते ही देखते बागीचा मरघट बन गया

चुनाव हुए और पैंतरा काम में आया
इंसानियत और गणतंत्र का घर
दिखावे का सर्कस बन गया

बस जहन में एक बात रह गई

“धुआँ धुआँ होकर जला था जो
उस शहर में मकान मेरा भी था
कौड़ियों के लालच में बिक गया जो
उस फेहरिस्त में ईमान तेरा भी था”

– The Half Mask Writer

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *