देख रहा है चलते-चलते!

देख रहा है समय गुजरते
देख रहा है स्वयं को मरते
रुकना है जिस ठौर में उसको
देख रहा है चलते-चलते

बचपन की क्रीड़ा पड़ाव पर
तन-मन की पीड़ा पड़ाव पर
यारी, रिश्ते, बंधन, नाते
स्वार्थ, मोह में जलते-जलते

देख रहा है चलते-चलते

जीवन की पूँजी भी मिट्टी
ज्ञान की हर कुँजी भी मिट्टी
मिट्टी सारी सुख सुविधाएं
व्यर्थ के लोभ में पलते-बढ़ते

देख रहा है चलते-चलते!

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