जब शाम धूप के आँचल से गिर रात का दामन थामेगी
जब चाँद फलक़ पर आएगा तारों की पलकें जागेंगी

जब अंधियारे से लड़ते जुगनू खिड़की पर तेरी बैठेंगे
जब हवा के झोंके खिड़की के पर्दे दाएं-बाएं फेंकेंगे

जब तू बिस्तर में करवट संग तकिए को गले लगाएगी
जब ख़्वाबों की खुश्बू आकर नींदें तेरी महकाएगी

तब फ़ोन में तेरी तस्वीरों को चूमेंगी आँखें मेरी
तब इश्क़ की मदहोशी में बेसुध झूमेंगी रातें मेरी

तब हसरत की बाहों को थामे तुझमें मैं खो जाऊंगा
तब चेहरे पर मुस्कान सजाए शायद मैं सो जाऊंगा

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