तुम भीड़ में रहकर चलना चाहते हो
मैं ख़ुद में रहकर ख़ुशियाँ तराशता हूँ
तुम शोर में जीने की वजह ढूंढ़ते हो
मैं ख़ामोशियों में एक दुनिया तलाशता हूँ
तुम भीगने की ख़ातिर बारिश चाहते हो
मैं प्यास बुझाने के लिए सावन चाहता हूँ
तुम शौक़ के लिए शामियाने चाहते हो
मैं सोने के लिए एक आंगन चाहता हूँ
तुम लुटाते हो दौलत बेइंतहा फिजूलखर्ची में
मैं भूखों के लिए एक वक्त निवाला माँगता हूँ
तुम चढ़ाते हो चादर हर रोज़ मज़ारों में
मैं नंगे बदन को ढ़कने का सहारा माँगता हूँ