“बागी”
बागी हुआ वो जीवनजिसे गलतियों परसमझाया नहींधमकाया गया।
बागी हुआ वो जीवनजिसे गलतियों परसमझाया नहींधमकाया गया।
“मेरी यात्रा अब उस पड़ाव पर है,जहाँ मुझे ज्ञानियों से अधिकमूर्ख सहयात्रियों की संगत भाती है।”
भाषाओं के मूढ़ तर्क मेंनैसर्गिक सम्मान है हिंदी,संस्कृति के शृंगार से शोभितअस्तित्व की पहचान है हिंदी।हृदय में ज्वाला प्रज्वल कर देऐसा इक आह्वान है हिंदी,विश्व पटल पर गर्व से सुदृढ़आर्यव्रत…
समझदार भी मूर्ख सभा में,पात्र हँसी का बन जाता है। मितव्ययी होके शब्द जो खर्चे,ज्ञानी वह ही कहलाता है।।
द्वंद छिड़ा है मन के भीतर,अधरों से मुस्काता मैं।जटिल है मेरे भाव समझना,तभी पुरुष कहलाता मैं।।
जब मैं शून्य पर होता हूँतब मैं समझ पाता हूँशिखर के महत्व कोस्वयं के अस्तित्व को