April 2024

“नींद”

जब शाम धूप के आँचल से गिर रात का दामन थामेगीजब चाँद फलक़ पर आएगा तारों की पलकें जागेंगी जब अंधियारे से लड़ते जुगनू खिड़की पर तेरी बैठेंगेजब हवा के…

“स्वप्न”

जब स्वप्न तुम्हारी आँखों से गिरकर तकिए पर बिछ जाएंजब भय का कोई प्रश्न ना हो पौरुष के उत्तर मिल जाएं जब मोह लोभ आलस्य व्यथाएं दृष्टिकोण से बाहर होंजब…

“आसमान के आँसू”

जब सुबह रास्ते के किनारे पत्तों पर गिरी ओंस देखता हूँतो सोचता हूँ कि कितनी ख़ामोशी से रोया होगा कल आसमानजब सारी दुनिया नींद के आगोश में होगी तब चुपके…

“देख रहा है चलते-चलते!”

देख रहा है चलते-चलते! देख रहा है समय गुजरतेदेख रहा है स्वयं को मरतेरुकना है जिस ठौर में उसकोदेख रहा है चलते-चलते बचपन की क्रीड़ा पड़ाव परतन-मन की पीड़ा पड़ाव…

क्यों?

यदि किसी संघर्ष को किस्मत की सहायता अनिवार्य है तो यह उस संघर्ष के लिए किसी लाचारी से कम नहीं।क्यों सौंप दिया जाता है अथक प्रयत्न को एक उम्मीद के…