“संवेदनहीन”
यदि मैं संवेदनहीन हो जाऊं,तो मुझमें तुम्हें स्वयं के जीवन काप्रतिबिंब दिखने लगेगा।
यदि मैं संवेदनहीन हो जाऊं,तो मुझमें तुम्हें स्वयं के जीवन काप्रतिबिंब दिखने लगेगा।
जब कभी कोई शाम ढ़लने को होऔर आसमान नारंगी किनारा थामे हुए होपरिंदे अपने घोंसलों को लौट रहे होंऔर हवा की ठंडक महसूस होने लगेतब किसी झील के किनारे परपानी…
मैं हकीकत में मिल नहीं पाया ज़रा मसला हैकिसी दिन ख़्वाब में ख़ुद से मिलाऊंगा तुम्हें बहुत हँसते हो ना मेरी बेबसी पे तुमकिसी दिन तसल्ली से बैठकर रुलाऊंगा तुम्हें…
तुम्हें याद है ना?वो रात जब तुम्हारे घर की छत परदीवारें फांदे चोरी-छिपे आया था मैंऔर तुमने थर्मस में बचा के रखी थीअदरक वाली चाय।तुम्हें सुनने थे ना लता के…
बागी हुआ वो जीवनजिसे गलतियों परसमझाया नहींधमकाया गया।
“मेरी यात्रा अब उस पड़ाव पर है,जहाँ मुझे ज्ञानियों से अधिकमूर्ख सहयात्रियों की संगत भाती है।”
भाषाओं के मूढ़ तर्क मेंनैसर्गिक सम्मान है हिंदी,संस्कृति के शृंगार से शोभितअस्तित्व की पहचान है हिंदी।हृदय में ज्वाला प्रज्वल कर देऐसा इक आह्वान है हिंदी,विश्व पटल पर गर्व से सुदृढ़आर्यव्रत…
समझदार भी मूर्ख सभा में,पात्र हँसी का बन जाता है। मितव्ययी होके शब्द जो खर्चे,ज्ञानी वह ही कहलाता है।।
द्वंद छिड़ा है मन के भीतर,अधरों से मुस्काता मैं।जटिल है मेरे भाव समझना,तभी पुरुष कहलाता मैं।।
जब मैं शून्य पर होता हूँतब मैं समझ पाता हूँशिखर के महत्व कोस्वयं के अस्तित्व को