तुम दिनकर की किरणों सी जब भी मुझको छूती हो
वह स्पर्श मेरी काया का रोम-रोम गरमाता है
केश तुम्हारे संग प्रवात के मद्धम जब लहलाते हैं
वह सुंदरता का दृश्य मेरा रक्त प्रवाह बढ़ाता है
कजरारे नयनों से इक टक मुख मेरा जो तकती हो
मध्य अधर भावों को भींचे मन मेरा मुस्काता है
कोमल सी वाणी में जब भी नाम मेरा तुम लेती हो
पाषाण हुआ हृदय भी मेरा नीर सा बह जाता है