मैं हकीकत में मिल नहीं पाया ज़रा मसला है
किसी दिन ख़्वाब में ख़ुद से मिलाऊंगा तुम्हें

बहुत हँसते हो ना मेरी बेबसी पे तुम
किसी दिन तसल्ली से बैठकर रुलाऊंगा तुम्हें

मेरी सूरत का छोड़ो उम्र संग बदल जाएगी
किसी दिन सीरत की जवानी दिखाऊंगा तुम्हें

अभी जो दूरी है फ़िलहाल उसी से काम चलाओ
किसी दिन कुर्बतों से अपनी रिझाऊंगा तुम्हें

ये नाराज़गी और शिकवे हैं जायज़
किसी दिन हाल-ए-दिल फुर्सत से बताऊंगा तुम्हें

सिर्फ़ एक मुलाक़ात का वक्त रखना मेरे लिए
लम्हे में सदियां जीना सिखाऊंगा तुम्हें

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