जब कभी कोई शाम ढ़लने को हो
और आसमान नारंगी किनारा थामे हुए हो
परिंदे अपने घोंसलों को लौट रहे हों
और हवा की ठंडक महसूस होने लगे
तब किसी झील के किनारे पर
पानी में पैर डुबाए हुए
मैं रात के अंधियारे का इंतज़ार करते-करते
एक कविता लग रहा हूँगा
जिसका शीर्षक होगा
“तुम”