जब सुबह रास्ते के किनारे पत्तों पर गिरी ओंस देखता हूँ
तो सोचता हूँ कि कितनी ख़ामोशी से रोया होगा कल आसमान
जब सारी दुनिया नींद के आगोश में होगी तब चुपके से
अपनी वेदना व्यक्त करने के लिए
बादलों की ओठ में
गिरा बैठा होगा विचारों से मिले भीगेपन को
और सुबह फिर सूरज के आने से पहले ही
सारा दोष धरती पर डाल दिया होगा।