साहस और भय के तनाव के मध्य
जब हृदय तुम्हारा विडंबना में होगा
और महसूस कर रहा होगा
धमनियों में तीव्र रक्त के प्रवाह को
जब तुम्हारा मस्तिष्क असहाय होगा
और निर्णय की अपेक्षा में
स्वयं को उत्साहित कर रहा होगा
जब उचित-अनुचित का भाव
स्वार्थ और सत्य की तुला पर होगा
तब उस विचारों के युद्ध
का परिणाम उत्तरदायी बनेगा
तुम्हारे जीवन के उत्थान और पतन का
और तब तुम्हें अनुभूति होगी
स्वयं के वास्तविक अस्तित्व की

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