उत्तराखंड परिवहन निगम की बस जो हर्षिल से हरिद्वार के लिए निकलती है वो सुबह ५ बजे चंबा चौराहे पर खड़ी थी। नई डेनिम जींस और किसी लोकल कंपनी की टी-शर्ट पहने कमर में पिट्ठू बैग लगाए नवीन उसमें चढ़ा। मई की सुबह थी तो मौसम सुहाना सा था, नवीन को खिड़की वाली सीट में बैठना बहुत पसंद था और उस दिन उसे किस्मत से बस की पिछली ओर एक सीट खाली मिल भी गई। कुछ देर रुकने के बाद बस चल पड़ी और नवीन हर बार की तरह खिड़की से बाहर देखने लगा। आमतौर पर ये सफ़र उसके लिए बहुत आम था लेकिन आज नहीं, आज का दिन वो दिन था जिसका इंतज़ार वो पिछले तीन सालों से कर रहा था। आज वो किसी खास इंसान से मिलने वाला था। बस ड्राइवर ने नरेंद्र सिंह नेगी जी का गाना “सुपिनू ह्वे होलू कि बैम रै होलू” चलाया और नवीन उसकी धुन के साथ पहाड़ों को देखता हुआ पुरानी यादों में खो गया।
बात है तीन साल पहले की, नवीन हर रोज़ की तरह अपनी दुकान में बैठा सामान की सूची बना रहा था तभी उसके whatsapp पर एक नोटिफिकेशन आया। किसी अंजाने नंबर से कोई मैसेज आया था और वो Delete for everyone हो गया था। नवीन ने उत्सुकता में reply में “?” भेज दिया। कुछ देर बाद सामने से जवाब आया “सॉरी, गलती से आपको मैसेज आ गया था”। नवीन की उत्सुकता और बढ़ी तो उसने पूछा “आप कौन और कहाँ रहते हैं?” कुछ देर केवल online दिखने के बाद reply आया “मेरा नाम सुधा है देहरादून से, सॉरी वो मैंने दोस्त का नंबर save करने में गलती कर दी और आपको message चला गया” “it’s ओके” नवीन ने रिप्लाई दिया और बात ख़त्म हो गई।
अगले दिन नवीन ने Whatsapp DP में पहाड़ों की कोई तस्वीर लगाई और शायद सुधा ने नवीन का नंबर डिलीट नहीं किया था तो उसे वो DP दिख गयी। उसी शाम को नवीन को मैसेज आया “आप बहुत खूबसूरत जगह में रहते हैं” और यहाँ से शुरुआत हुई नवीन और सुधा की बातचीत या यूँ कहूँ दोस्ती की।
“हाँ, भैजी कख?” नवीन बाहर देखते हुए उस दिन को सोचते हुए मुस्कुरा ही रहा था कि कंटक्टर कि आवाज ने उसका ध्यान भटका दिया।
“एक ऋषिकेश” उसने कहा और अभी भी वो मुस्कराहट उसके चेहरे से उतरी नहीं थी। कंडक्टर भी मुस्कुराते हुए उसे टिकट थमा गया और नवीन फिर जेब से अपना फोन निकालकर पुराने मैसेज पढ़ने लगा। थोड़ी देर में वो एक मैसेज पर रुका और उसे मुस्कुराकर घूरते हुए अंघूठे से फोन की screen पर सहलाने लगा। उसमें लिखा था “शायद अब हमें मिलना चाहिए।”
नवीन और सुधा की कहानी बिल्कुल किसी फिल्म की तरह थी, उन्हें बात करते हुए तीन साल हो चुके थे लेकिन उन्होंने आज तक एक-दूसरे को कभी देखा नहीं था। दोनों की Whatsapp dp में चेहरे नहीं थे और ना कभी उन्होंने ख़ुद की तस्वीर एक-दूसरे को कभी भेजी। हाँ, एक बार नवीन ने सुधा से उसको देखने की इच्छा जाहिर की थी मगर सुधा ने यह कहकर टाल दिया कि जब मिलोगे तब देख लेना। तो आख़िरकार तीन सालों के लंबे इंतज़ार के बाद आज वो दिन था जब नवीन और सुधा एक-दूसरे को देखने वाले थे।
बस सुबह ६:४५ पर ऋषिकेश बस अड्डे पहुँची, यहाँ से नवीन को देहरादून के लिए दूसरी बस पकड़नी थी। हालाँकि मिलने का वक़त १० बजे का तय था घंटाघर में लेकिन नवीन के जल्दी आने कि वजह थी। वो ना तो ट्रैफिक में फँसके देर से पहुँचना चाहता था और ना ही वो सुधा के लिए कोई तोहफ़ा लाया था, तो उसे देहरादून पहुँच के जल्दी से कुछ लेना था। वो असमंजस में था कि क्या दिया जाए और इसी सोच में कब वो ऋषिकेश से देहरादून पहुँच गया उसे पता भी नहीं चला। बस ८ बजे ISBT पहुँची और नवीन जल्दी से दौड़ता हुआ विक्रम की तरफ गया।
“भईया घंटाघर?” उसने पूछा और विक्रम में बैठ गया। करीब ८:४० वो घंटाघर पहुँचा, अभी भी उसके पास १ घंटा और २० मिनट थे मगर समस्या ये थी कि मार्किट ९ बजे खुलना शुरू होता था। वो पल्टन मार्किट में घुसा और दुकानें ढूँढ़ने लगा जहाँ से वो कुछ सुधा के लिए ले सके।
आख़िरकार बहुत ही लंबे confusion के बाद उसे कुछ पसंद आया। उसने फटाफट बिल चुकाया और घड़ी की तरफ देखा।समय हो रहा था १०:05 और वो घंटाघर से बहुत दूर आ चुका था। वो घबराहट में घंटाघर की तरफ़ भागने लगा तभी उसका फोन बजा। सुधा का कॉल था, सुधा ने उसे बताया कि आज बाकी दिनों के मुक़ाबले ट्रैफिक बहुत ही ज्यादा है और वो आधे घंटे से एक ही जगह में फँसी है। शायद घंटाघर तक पहुँचने में और पता नहीं कितना वक़्त लगेगा तो हम कहीं बीच में मिलते हैं। ये सुनकर नवीन की जान में जान आयी क्योंकि वो पहली मुलाक़ात पर late नहीं होना चाहता था। सुधा रायपुर से आ रही थी तो उन्होंने pacific मॉल में मिलने का plan बनाया। नवीन ने घंटाघर पहुँच कर विक्रम लिया और अपनी मंज़िल की ओर चल पड़ा। जैसे-जैसे दूरी काम होती जा रही थी वैसे-वैसे नवीन की धड़कन और साँसों की गति तेज होती जा रही थी। “कैसी दिखती होगी वो?” “क्या मैं उसे पसंद आऊँगा?” “क्या उसे मेरा तोहफ़ा पसंद आएगा?” ना जाने कितने सवाल नवीन के मन में घूमने लगे और तभी उसे ड्राइवर की आवाज सुनाई दी “आ जाओ भाई paicific वाले।” विक्रम में full वॉल्यूम के साथ गाना बज रहा था लेकिन नवीन के कानों में अपनी धड़कन की आवाज भरी पड़ी थी। फ़िर अचानक बाकी यात्रियों के झटके के साथ वो नीचे उतर आया और
उसका दिमाग जो विचारों से भरा पड़ा था एक दम blank हो गया। वो किराया देकर मॉल की तरफ़ बढ़ने लगा और उसके कानों में विक्रम(ऑटो) से आती हुई गाने की आवाज पड़ी;
“आज उनसे पहली मुलाक़ात होगी, फ़िर आमने-सामने बात होगी…….”
To Be Continued………